हल्द्वानी: सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन में दबकर शहीद हुए लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल उनके घर हल्द्वानी पहुंच गया है। पार्थिव शरीर उनके आवास डहरिया पहुंचते ही भारत माता की जयकारों से गूंज उठा ।
लगभग 10 मिनट परिजनों को अंतिम दर्शन कराए गए। पूरा माहौल गमगीन सा हो गया, शहीद चंद्रशेखर हर्बोला की पत्नी शांति देवी अपने पति के पार्थिव शरीर को देखकर रो पड़ी। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग शहीद हर्बोला को श्रद्धांजलि देने के लिए गली व मकान छतों पर मौजूद रहे। इसके बाद शहीद के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि स्थल पर लाया गया है। इस दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शहीद जवान की शहादत को नमन करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित किए तथा परिजनों को ढांढस बंधाया।
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि ऑपरेशन मेघदूत में बलिदान हुए चन्द्रशेखर हर्बोला को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। उनकी स्मृति को हमेशा यादों में जिंदा रखने के लिए शहीद धाम में लगाया जाएगा। सीएम ने कहा कि चंद्रशेखर के बलिदान पर उत्तराखंड ही नहीं पूरा देश गर्व करता है। बलिदानी के भतीजे राजेंद्र सिंह हर्बोला ने सीएम धामी से बलिदानी के मूल निवास बेंती से गांव तक सड़क बनाने की मांग की। इस पर सीएम के जल्द मांग पूरी करने का आश्वासन दिया। श्रद्धांजलि देने वालों में मंत्री गणेश जोशी, रेखा आर्य, मेयर जोगेन्द्र सिंह रौतेला, लालकुआं विधायक मोहन सिंह बिष्ट, विधायक राम सिंह केड़ा समेत सैकड़ों लोग मौजूद रहे।
लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला 1971 में कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। 29 मई मई 1984 को बटालियन लीडर लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर के नेतृत्व में 19 जवानों का दल ऑपरेशन मेघदूत के लिए निकला था। बर्फीले तूफान में ऑपरेशन मेघदूत में 19 लोग दबे गए थे जिनमें से 14 जवानों का शव बरामद कर लिया गया था, लेकिन पांच जवानों का शव नहीं मिल पाया था जिसके बाद सेना ने चंद्रशेखर के घर में यह सूचना दी थी कि उनकी मौत बर्फीले तूफान की वजह से हो गई है।
उस समय लांसनायक चंद्रशेखर की उम्र 28 साल थी। उसके बाद परिजनों ने बिना शव के चंद्रशेखर हर्बोला का अंतिम क्रिया-कर्म पहाड़ी रीति रिवाज के हिसाब से कर दिया था. लेकिन अब 38 साल बाद चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर सियाचीन में खोजा गया है, जो बर्फ के अंदर दबा हुआ था