हरियाली-खुशहाली और समृद्धि के साथ देवभूमि की आस्था से भी जुड़ा है हरेला

देहरादूनउत्तराखंड को देश में सबसे ज्यादा लोक पर्वों वाला राज्य भी कहा जाता है। इन लोक पर्वों में से एक ‘हरेला त्योहार’ भी है। यह लोकपर्व उत्तराखंड की आस्था का प्रतीक भी माना जाता है।‌ प्रकृति को समर्पित, उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक लोकपर्व “हरेला” आज देवभूमि में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। यह त्यौहार हरियाली, खुशहाली और समृद्धि के लिए भी जाना जाता है। उत्तराखंड में सावन की शुरुआत हरेला पर्व से मानी जाती है. जबकि देश के अन्य हिस्सों में सावन माह का आगमन हो चुका है। यह पर्व हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है।

हरेला नाम से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह हरियाली का प्रतीक है। इस त्योहार के आने से उत्तराखंड में हरियाली और भी ज्यादा दिखाई देने लगती है। इस लोकपर्व को लेकर लोगों की गहरी आस्था भी जुड़ी हुई है। हरेला ऋतु परिवर्तन के साथ भगवान शिव के विवाह की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे हरकाली पूजन कहते हैं और आज के दिन से ही पहाड़ में मेले उत्सव की शुरुआत भी होती है।

कहा जाता है कि इस दिन कोई भी व्यक्ति इस दौरान हरी टहनी भी रोप दे तो वह फलने लगती है। इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत राज्य के लोगों को हरेला पर्व पर शुभकामनाएं दी हैं। सीएम धामी ने कहा कि हरेला पर्व प्रकृति के संरक्षण का त्योहार है। धामी ने कहा कि उनका प्रयास है कि हरेला पर्व में जन-जन की भागीदारी हो और आने वाली पीढ़ी भी इसकी भागीदार बने। हमें पौधे रोपने तक ही सीमित नहीं रहना है वरन उनके संरक्षण एवं संवर्धन भी ध्यान देना होगा।

उत्तराखंड में हरेला त्योहार साल में तीन बार मनाया जाता है

हरेला प्रकृति से जुड़ा एक लोकपर्व है, जो उत्तराखंड में मनाए जाने वाले त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है। वैसे हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में मनाया जाता है, इन तीनों में से सावन महीने में मनाया जाने वाला हरेला विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। सावन शुरू होने से कुछ दिन पहले हरेला बोया जाता है। इसे संक्रांति के दिन काटा जाता है। त्‍योहार के 9 दिन पहले ही 5 से 7 तरह के बीजों की बुआई की जाती है। इसमें मक्‍का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट शामिल होते हैं। इसे टोकरी में बोया जाता है और 3 से 4 दिन बाद इनमें अंकुरण की शुरुआत हो जाती है। इसमें से निकलने वाले छोटे-छोटे पौधों को ही हरेला कहा जाता है। इन पौधों को देवताओं को अर्पित किया जाता है। घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं। इस पर्व में लोग बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लेते हैं लेकिन नौकरी-पेशा करने वाले और घर से दूर रहने वालों को हरेला के तिनके भेजे जाते हैं। जिन्हें बड़ों का आशीर्वाद और ईष्टों की कृपा मानकर कान और सिर पर रखा जाता है। आज हरेला पर्व पर  उत्तराखंड में चारों ओर हरियाली नजर आती है । इस मौके पर उत्तराखंड के लोग पौधरोपण भी करते हैं।

शंभू नाथ गौतम

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