पहले असम में नेतृत्व परिवर्तन और फिर उत्तराखंड, कर्नाटक और अब गुजरात में चुनाव से महज से एक साल पहले मुख्यमंत्री का बदला जाना साफ संकेत है कि भाजपा में मुख्यमंत्री के लिए सिर्फ साफ छवि पर्याप्त नहीं है। विकास कार्य भी पर्याप्त नहीं है। जनता के बीच यह भावना जरूरी है कि विकास हो रहा है। जिस तरह चार-पांच महीनों में चेहरे बदले गए हैं, उसके बाद यह चर्चा भी तेज हो गई है कि अन्य राज्यों में भी बदलाव हो सकता है।
असम में यूं तो सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री थे और कई विकास कार्य भी हो रहे थे लेकिन शुरुआत से ही वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ही चेहरा थे। उत्तराखंड में रावत सरकार में विकास ही गति नहीं पकड़ पाई थी और कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा के कारण पार्टी के अंदर खेमेबाजी बढ़ गई थी।
गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी पांच साल में अपनी धमक ही नहीं जमा पाए। इन सभी बदलावों में एक बात और काबिलेगौर रही कि कहीं भी कोई असंतोष नहीं पनपा। कर्नाटक जैसे राज्य में भी बहुत शांति के साथ सत्ता का हस्तांतरण हो गया और हर स्थान पर पार्टी एकजुट है। जाहिर तौर पर यह केंद्रीय नेतृत्व की मजबूती का संकेत देता है। इसलिए भी क्योंकि गुजरात में अब चुनाव को बहुत लंबा वक्त नहीं है। उत्तराखंड तो चुनाव के मुहाने पर ही खड़ा है।