देहरादून: सुपरिचित पत्रकार और द वायर की संपादक आरफा खानम शेरवानी ने महिलाओं का आह्वान किया है कि वे अपने अधिकार लेने के लिए एकजुट हो जाएं। इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं धर्म और जातियों के दायरे से बाहर निकलें।
आरफा खानम शेरवानी नगर निगम सभागार में आयोजित उत्तराखंड महिला मंच के 31वें स्थापना दिवस सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि हर धर्म में महिलाओं को हमेशा से दोयम दर्जे का माना जाता रहा है। हाल के दौर में किसान आंदोलन और शाहीन बाग आंदोलन के दौरान महिलाओं ने आगे आकर एक नई भूमिका अपने कंधों पर ली है, लेकिन राजनीतिक दल अब धर्म के नाम पर महिलाओं को बांटने का प्रयास कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले तक पत्रकारिता में महिलाओं के लिए कोई खास जगह नहीं होती थी। लेकिन, कई महिलाओं ने पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे आकर इस क्षेत्र में आने वाली महिलाओं के लिए नए दरवाजे खोले हैं। पहले महिलाओं को सिर्फ फैशन और इसी तरह की रिपोर्टिंग करने के लिए कहा जाता था। लेकिन, आज महिलाएं राजनीतिक, आर्थिक और विदेशी मामले जैसी बीट पर काम कर रही हैं। यह आशाजनक है। उन्होंने अफसोस जताया कि आज महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की बातें तो बहुत होती हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व करने वाली महिलाओं की संख्या सिर्फ एक प्रतिशत है।सम्मेलन मैं मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध वैज्ञानिक और पर्यावरण विद डॉक्टर रवि चोपड़ा ने हिमालय और हिमालय की चुनौतियां विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि हिमालय देखने में हमें बेशक बहुत मजबूत पर्वत लगता हो, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। यह बहुत खोखला और बहुत कमजोर पहाड़ है। उन्होंने कहा कि आज हम विकास के नाम पर हिमालय को तबाह करने में जुटे हुए हैं। बड़े-बड़े बांध और चौड़ी-चौड़ी सड़कें बनाकर हमने हिमालय को और ज्यादा कमजोर कर दिया है। इसके साथ ही मध्य हिमालय क्षेत्र के घने जंगल भी हमने काट दिए हैं, जिससे भूजल का स्तर लगातार कम हो रहा है। प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं और नदियों में पानी की कमी हो रही है । डॉक्टर चोपड़ा ने कहा कि यदि आज से ही इस स्थिति से निपटने के प्रयास नहीं किए गए तो यह भीषण तबाही को निमंत्रण होगा।
सम्मेलन में उत्तराखंड महिला मंच की ओर से चार प्रस्ताव भी पारित किए गए। ट्रांसजेंडर समुदाय की ओर से ओशीन ने अपने समुदाय के लोगों को संवैधानिक अधिकार और सामाजिक सम्मान दिलाने के लिए आम लोगों से सहयोग की अपेक्षा की। शीला रजवार ने मुज्जफरनगर नगर कांड के दोषियों को सजा, गैरसैंण राजधानी और अंकिता के वीआईपी का नाम उजागर करने का प्रस्ताव रखा। विमला कोली ने जल, जंगल जमीन पर अधिकार और निर्मला बिष्ट नफरत की राजनीति और उत्तराखंड में साम्प्रदायिक वैमनस्य के खिलाफ प्रस्ताव रखा। डॉ. उमा भट्ट ने अपने अध्यक्षीय भाषण में राज्य आंदोलन से अब तक जन मुद्दों महिला मंच के कार्यों का उल्लेख किया और कहा कि मंच जनता के सहयोग से अपनी गतिविधियां चलाता है।
इससे पहले उत्तराखंड महिला मंच की कमला पंत ने मंच के 30 वर्षों के की यात्रा पर विस्तृत रिपोर्ट सम्मेलन में प्रस्तुत की। उत्तराखंड आंदोलन में सक्रिय रही महिलाओं ने 30 वर्ष की यात्रा पर एक गीत नाटिका भी प्रस्तुत की, जिसका निर्देशन सतीश धौलाखंडी ने किया। कार्यक्रम की संचालन चंद्रकला और निर्मला बिष्ट ने किया। मंच की संस्थापक सदस्य भुवनेश्वरी कठैत का खासतौर पर सम्मान किया गया।
सम्मेलन में माया चिलवाल, ज्योति सनवाल, मनोरमा नेगी, प्रभा रतूड़ी मुन्नी तिवारी, लीला बोहरा, ऊषा भट्ट, पद्मा गुप्ता,मंजु बलोदी, सीमा नेगी, मातेश्वरी, शांति सेमवाल, शांता नेगी, विजय नैथानी, सरोज कलोड़ा, शकुंतला मुंडेपी, तुषार रावत, जनकवि अतुल शर्मा, रोशन धस्माना, त्रिलोचन भट्ट, इंद्रेश मैखुरी, अनूप नौटियाल, परमजीत सिंह, गजेंद्र भंडारी के साथ हघ सरस्वती विहार समिति सहित कई संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।