कमलेश्वर मंदिर: संतान प्राप्ति के लिए 147 नि:संतान दंपत्तियों ने रात भर दीये को हाथ में रखकर की उपासना, ये है मान्यता

श्रीनगर: बैकुंठ चतुर्दशी पर संतान प्राप्ति के लिए उत्तराखंड के श्रीनगर में स्थित कमलेश्वर मंदिर में 147 दंपतियों ने खड़ा दीया पूजा में हिस्सा लिया। इस दौरान सभी दंपतियों ने रात भर हाथों में घी के दीये को हाथ में रख कर भगवान शिव की आराधना की। बुधवार को गोधूलि बेला से शुरू हुआ अनुष्ठान आज सुबह 5 बजे तक जारी रहा। इसके बाद सभी दंपतियों ने अलकनंदा नदी में स्नान ध्यान कर भगवान शिव से मनोकामनाएं मांगी।

इस पूजा के लिए 185 दंपतियों ने पंजीकरण कराया था, लेकिन पूजा में 147 दंपतियों ने ही हिस्सा ले पाए। कमलेश्वर मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने दीपक जलाकर खड़ा दीया पूजा का शुभारंभ किया। महिलाओं के कमर में एक कपड़े में जुड़वा नींबू, श्रीफल, पंचमेवा और चावल की पोटली बांधी गई। इस के बाद महंत ने सभी दंपतियों के हाथ में दीपक रखते हुए पूजा-अर्चना की।

दंपति रातभर हाथ में जलते दीपक लेकर भगवान कमलेश्वर की पूजा करते रहे। गुरुवार सुबह स्नान के बाद महंत द्वारा दंपतियों को आशीर्वाद देकर पूजा संपन्न करवाई गई। अनुष्ठान में शामिल होने के लिए उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात और राजस्थान समेत कई राज्यों से दंपति श्रीनगर पहुंचे हुए थे।

क्या है मान्यता-

पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब देवता दानवों से पराजित हो गए, तब वह भगवान विष्णु की शरण में गए, जिस पर दानवों पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु यहां भगवान शिव की तपस्या करने आए थे। पूजा के दौरान वह शिव सहस्रनाम के अनुसार शिवजी के नाम का उच्चारण कर सहस्र (एक हजार) कमलों को एक-एक करके शिवलिंग पर चढ़ाने लगे. विष्णु की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने एक कमल पुष्प छुपा लिया। एक कमल पुष्प कम होने से यज्ञ में कोई बाधा न पड़े, इसके लिए विष्णु ने अपना एक नेत्र निकालकर अर्पित करने का संकल्प लिया. इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु को अमोघ सुदर्शन चक्र दिया। जिससे भगवान विष्णु ने राक्षसों का विनाश किया। सहस्र कमल चढ़ाने की वजह से इस मंदिर को कमलेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा। इस पूजा को एक निसंतान दंपति देख रहे थे. मां पर्वती के अनुरोध पर शिव ने उन्हे संतान प्राप्ति का वर दिया। तब से यहां कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) की रात संतान की मनोकामना लेकर लोग पहुंचते हैं।

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