देहरादून: प्रदेश भर में मजबूत भूमि कानून की मांग को देखते हुए सरकार तेजी से उचित कदम उठा रही है। भूमि कानून को मजबूत बनाने के उद्देश्य से पूर्व में बनाई गई समिति की रिपोर्ट की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय प्रारूप समिति ने काम शुरू कर दिया है। इसमें विशेष जोर दिया जा रहा है कि राज्य में जिस उद्देश्य के लिए भूमि खरीदी जाए, उसका उपयोग निर्धारित समय अवधि के भीतर सुनिश्चित हो।
इसके साथ ही, भूमि खरीद से पहले खरीदार और विक्रेता, दोनों की पहचान के साथ-साथ उचित कारण भी बताने के लिए उन्हें सत्यापित करना होगा। सरकार नई व्यवस्था को अधिक सख्त बनाने के लिए 12.5 एकड़ तक की सीलिंग को खत्म करने पर भी विचार कर रही है। राज्य में भूमि कानून के मुद्दे अभी हलचल में हैं।
अगर हम पिछले वर्षों की दिशा में देखें तो उत्तराखंड के अस्तित्व के बाद से ही यह मांग उठने लगी थी, हालांकि पहले राज्य में उत्तर प्रदेश के भू-कानून का अनुसरण किया गया था।
भूमि कानून को कड़ा बनाने के लिए प्रयास किए गए हैं। 2002 में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में चुनी गई पहली सरकार ने कानून में संशोधन किया, जिसमें राज्य के बाहर व्यक्तियों को आवास के लिए 500 वर्ग मीटर तक की भूमि की खरीद की अनुमति दी गई, जबकि कृषि भूमि की खरीद पर प्रतिबंध लगाया गया। इसके साथ ही, राज्य में 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि की खरीद का अधिकार डीएम को दिया गया, और चिकित्सा, स्वास्थ्य, औद्योगिक उपयोग के लिए भूमि की खरीद के लिए सरकारी स्वीकृति अनिवार्य बनाई गई। तब भूमि की खरीद के उद्देश्य को दो साल में पूरा करने की भी शर्त रखी गई थी, जो बाद में विस्तार भी हो गया।
भू कानून में संशोधन हो रहे हैं। 2007 में सत्ता परिवर्तन के बाद, भुवन चंद्र खंडूड़ी सरकार ने भूमि की खरीद की अनुमति 500वर्ग मीटर से घटाकर 250 वर्ग मीटर की। वर्ष 2017 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में भू कानून में फिर संशोधन हुए। तब पूंजी निवेश को आकर्षित करने के दृष्टिगत औद्योगिक समेत विभिन्न उपयोग के लिए भूमि खरीद का दायरा 12.5 एकड़ से अधिक कर दिया गया। तब इसका राज्य में विरोध हुआ था और ये मांग उठी थी कि हिमाचल के समान ही राज्य में कड़ा भू कानून लागू किया जाए।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले वर्ष भू कानून को और मज़बूत बनाने के उद्देश्य से पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में समिति की गठन की। इस समिति ने भू कानून से जुड़े प्रावधानों और उनमें हुए संशोधनों का विश्लेषण कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सितंबर महीने में सौंपी। इस रिपोर्ट में 23 सिफ़ारिशें शामिल थीं।
समिति ने यह सिफ़ारिश की कि कृषि या औद्योगिक उद्देश्यों से दी गई भूमि का दुरुपयोग हो रहा है, इसलिए इस अनुमति को जिला मज़िस्ट्रेट के बजाय सरकारी स्तर पर दी जानी चाहिए।
सरकार को एक प्रारूप तैयार करने के लिए सौंपा जाएगा, जिसमें एमएसएमई के लिए न्यूनतम भूमि आवश्यकता के आधार पर अनुमति देने की सिफ़ारिश की गई है, आवासीय उद्देश्यों के लिए 250 वर्ग मीटर की अधिकतम सीमा रखने की, और जो उद्देश्य भूमि को दी गई है उसे पूरा करने की अधिकतम सीमा को तीन वर्ष तक बढ़ाने की सिफ़ारिश की गई है।
जबकि समय के साथ भू कानून की मांग बढ़ रही है, सरकार ने सुभाष कुमार समिति की रिपोर्ट की जांच के लिए एक प्रारूप समिति की गठन की है। यह प्रारूप सरकार को भू कानून के लिए नया नियमावली तैयार करने में मदद करेगा।