Uttarakhand: लोक पर्व फूलदेई पर भराड़ीसैंण स्थित विधान सभा भवन में जीवंत हुई लोक संस्कृति

गैरसैंण: चैत्र मास की संक्रांति को आयोजित होने वाले उत्तराखण्ड के लोक पर्व फूलदेई के अवसर पर भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा भवन में बड़ी संख्या में क्षेत्र के बच्चों ने पारम्परिक मांगल गीतों के साथ रंग-बिरंगे प्राकृतिक पुष्पों की वर्षा की।

बच्चों के साथ विधानसभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतु खण्डूड़ी, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, डॉ. धनसिंह रावत, सौरभ बहुगुणा, डॉ. प्रेम चन्द अग्रवाल, विधायक अनिल नौटियाल आदि ने बच्चों से भेंट कर अपनी लोक संस्कृति एवं लोक परम्पराओं से जुड़ने के लिए उनका उत्साह वर्धन किया।

विधान सभा अध्यक्ष के साथ सभी ने इस पावन पर्व की बधाई देते हुए कहा कि हमारे पर्व हमें प्रकृति से जुड़ने तथा उसके संरक्षण का संदेश देते हैं। अपनी लोक परम्पराओं एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोये रखने की भी जरूरत बतायी।

ये है परंपरा

फूलदेई से एक दिन पहले शाम को बच्चे रिंगाल की टोकरी लेकर फ्यूंली, बुरांस, बासिंग, आडू, पुलम, खुबानी के फूलों को इकट्ठा करते हैं। अगले दिन सुबह नहाकर वह घर-घर जाकर लोगों की सुख-समृद्धि के पारंपरिक गीत गाते हुए देहरियों में फूल बिखेरते हैं। इस अवसर पर कुमाऊं के कुछ स्थानों में देहरियों में ऐपण (पारंपरिक चित्र कला जो जमीन और दीवार पर बनाई जाती है।) बनाने की परंपरा भी है।

अंतिम दिन की जाता है पूजा

‘घोघा माता फुल्यां फूल, दे-दे माई दाल चौंल’ और ‘फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार’ गीत गाते हुए बच्चों को लोग इसके बदले में दाल, चावल, आटा, गुड़, घी और दक्षिणा (रुपए) दान करते हैं। पूरे माह में यह सब जमा किया जाता है। इसके बाद घोघा (सृष्टि की देवी) पुजाई की जाती है। चावल, गुड़, तेल से मीठा भात बनाकर प्रसाद के रूप में सबको बांटा जाता है। कुछ क्षेत्रों में बच्चे घोघा की डोली बनाकर देव डोलियों की तरह घुमाते हैं। अंतिम दिन उसका पूजन किया जाता है।

यह है धार्मिक महत्वता

फूलदेई को लेकर एक कथा प्रचलित है जिसे अनुसार एक बार भगवान शंकर तपस्या में लीन हो गए। कई ऋतु चली गई। ऐसे में देवताओं और गणों की रक्षा के लिए मां पार्वती ने चैत्र मास की संक्रांति के दिन कैलाश पर घोघिया माता को पुष्प अर्पित किए। इसके बाद से ही चैत्र संक्रांति पर फूलदेई का पर्व मनाया जाने लगा।

 

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