(वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार वेदवाल की कलम से)
भगवान विष्णु का अवतारुं म कृष्ण कू अवतार कितगा भलू च कितगा स्वाणूं च। मथुरा म जल्मया बाल़ा कृष्ण का अवतरित हूंण की बात गढ़वाल़ अर गढ़वाल़ि म इन बुल्ये जांद कि बल ‘भादो की अष्टमी जल्मी नारैणा,कंस की खोल़ी म जल्मी नारैणा’। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा गढ़वाल़ म अधिकतर नागरजा का रूप मा हूंद। टीरी म सेममुखेम अर पौड़ी म डांडा नागरजा भगवान श्रीकृष्ण का नागरजा अवतारी धाम छिन। सबसे खास बात याच कि यूं द्वी जगा नाग देवता की पूजा कू मतलब भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-पिठै च। गढ़वाल़ का जागर-घन्ड्यल़ौं म जब ‘हे मोहाना, हे मोहाना’ की वार्ता लगद त फिर देवकी को जायो अर यशोदा कू आंख्यूं क रतन कृष्ण-कन्हैया क बाललीला कू बड़ी ही सुन्दर बात बतयै जांद कि ‘खेला गेंदवा बल खेला गेंदवा’ या फिर ‘ह्वैलु धेनू कू चरया हे मोहना’।
गढ़वाल़ का परगना,पट्टी अर गौं-गौं म नागरजा थरप्यां छिन मंदिर बण्यां छिन। नगरजा पूजन का दिनूं म यूं मंदिरू म रोट कट्यै जांद,दूध अर चौंल से बण्यां उगरा कू भोग लग्यै जांद। घरया घ्यू कू धुपार अर बद्री गौड़ी क पवित्र दूध का छीटा से नागरजा की पूजा अर पौ पिठै कू रिवाज च। हरेक गौं कू अपणू नागरजा कू मंदिर जरूर हूंद। कखि नागरजा कू मंदिर सैंण म हूंद त कखि धार म। जख कखि बी नागरजा कू मंदिर सैंण म हूंद त वीं जगा खुणै नागरजा की खोल़ी अर जख धार म नागरजा कू मंदिर हूंद त वीं जगा खुणै नागरजा कू तपड़ बुल्यै जांद। सौंण-भादो का मैना जौं दिनूं गढ़वाल़ की रौंत्यल़ी धरती म संगता हरियाल़ि पसरीं रैंद तौं दिनूं धार मु नागरजा क तपड़ पर बण्यूं नागरजा कू मंदिर भौत ही स्वाणू लगदू। गढ़वाल़ म नागरजा तैं कखि ईष्ट द्यबता, कखि ग्राम द्यबता,कुल द्यबता त कखि-कखि भूमि का भूम्याल़ क तौर पर नचयै जांद, पुजै जांद। टीरी-उत्तरकाशी जनै नागरजा क दुसरू रूप म ‘नगेला’ भी पुजै जांद। नगेला द्यबता तैं नागरजा का रूप म ही अवतरित करै जांद लेकिन इखमा भगवान श्रीकृष्ण का जागर नि लगदिन। इन बुल्यै जांद कि बल नगेला द्यबता की ‘लस्या थाती वजीरा गादी’। अर फिर त दयूल नगेल नाचलू गीत त बात अर भौंण कुछ इस सि च।
दयूल नगेलो आयो जसीलो देवता
दयूल नगेलो आयो रमोली की थाती
दयूल नगेलो आयो लेंदी देंदी दूध
दयूल नगेलो आयो मनखी देंद वूध।
नागरजा की पूजा तैं परचूधारी द्यबता की पूजा मणै जांद। आस्थावान लोग बतंदिन कि नागरजा भगवान भूमि का स्वामी छन। सकल़ा मन से नागरजा की पूजा-पाठ कन से अन्न,धन का कोठार अर भंडार मु खूब बरकत हूंद। दुख,दरिद्रता अर आदि-ब्याधि दूर हुंदिन। दगडा-दगडि अनिष्ठ करण वली ताकत भी कमजोर हुंदिन।
गढ़वाल़ म पंडों वार्ता म ‘पंडों खेला पांसा,पंडों खेला पांसा’ का मंडाण म द्रौपदी की लाज रखदरा श्रीकृष्ण की महिमा कू बखान च। इतगै ही ना बल्किन कन्हैया की रासलीला कू बखान भी गढ़वाल़ का गारुडी जागरी, विद्वान बामण अर धर्मात्मा मनिखी बड़ा ही तौर-तरीका से करदिन। इखमा भगवान कृष्ण अर कुसमा कोल़ण का प्यार-पिरेम कू प्रसंग बुलदरा औ- अदब से अर सुंणदरा बड़ा ही ध्यान कैकि सुणदिन। इन बुल्ये जांद कि बल मकरैंणी-उतरैंणी कू सुदिन-सुबार च। कुसमा कौल़ण दिपराग म गंगा जी का एक छाला पर नहैंणी च अर हैंका छाला पर श्रीकृष्ण नहैंणा छिन। तबारि कुसमा क लटयल्यूं की एक लट गंगा जी का पांणी मु बौगदा-बौगदा हैंका छाला पर चलि जांद। श्रीकृष्ण जब ईं सुनहरी लट तैं दिखदिन त कुसमा क बारम स्वचण बैठ जंदिन की जैंकी लटुली इतगा सुंदर च त वींकी मुखडी कितगा स्वाणीं होली। राधा-रुकमणी की बात त गढ़वाल़ का जन-मानस क ज्यू-जान छिन। भगवान श्रीकृष्ण कू अवतार मनिखि तैं कर्मयोग की शिक्षा भी दींद अर मनिखी अपणा कर्मक्षेत्र म हरीं बाजी कनख्यै जीत सकद ईं बात कू आस भी बधौंद,सांसू भी दींद अर बाटू भी बतौंद।