सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की आरंभिक सार्वजनिक निर्गम यानी आईपीओ की चल रही प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि, शीर्ष अदालत एलआईसी के आईपीओ के खिलाफ सरकार के शेयरों और याचिकाओं को कमजोर करने की चुनौती पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, सूर्यकांत और पीएस नरसिम्हा की बेंच ने यह फैसला लिया।
सरकार ने दिया कोर्ट को तर्क
केंद्र सरकार ने एलआईसी के आईपीओ के खिलाफ शीर्ष अदालत में दायर याचिकाओं के एक बैच का विरोध किया है। याचिकाकर्ताओं ने मनी बिल के माध्यम से एलआईसी के आईपीओ को लॉन्च करने के निर्णय को पारित करने के सरकार के कदम की वैधता को चुनौती दी। केंद्र सरकार की ओर से भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह भारत के इतिहास में सबसे बड़े आईपीओ में से एक है। 73 लाख से अधिक आवेदक शामिल थे और 22.13 करोड़ शेयर 939 रुपए प्रति शेयर के प्रीमियम पर बेचे गए हैं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क
इस बीच, वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने याचिकाकर्ताओं के लिए तर्क दिया कि सरकार द्वारा एलआईसी आईपीओ को धन विधेयक के माध्यम से बेचने के निर्णय को पारित करने की वैधता पर भी विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इसे धन विधेयक के रूप में पारित नहीं किया जा सकता था क्योंकि इसमें जनता के अधिकार शामिल हैं।
बजट बैलेंस करने में खर्च होगा सारा पैसा
सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने भी सुप्रीम कोर्ट में एलआईसी आईपीओ के विरोध में दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि पॉलिसी होल्डर्स से तथाकथित नॉन पार्टिसिपेटिंग सरप्लस के नाम पर 523 लाख करोड़ रुपये डायवर्ट किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘कंपनी का मालिकाना हक बदल रहा है और यह नए हाथों में जा रही है। इसे शेयर होल्डर्स के हाथों में बेचा जा रहा है। इससे जो पैसा मिलेगा, वह पॉलिसी होल्डर्स के पास नहीं जाएगा, बल्कि सारा पैसा भारत सरकार के बजट को बैलेंस करने में खर्च होगा
एएसजी ने किया विरोध
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि एलआईसी आईपीओ पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। उन्होंने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में कोई नोटिस नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि नियमों को देखिए। यह देखें कि इंश्योरेंस बिजनेस के सरप्लस को किस तरह से इस्तेमाल किया जाता है। जयसिंह ने इसके जवाब में कहा कि सरकार एलआईसी के पॉलिसी होल्डर्स के लिए ट्रस्टी की भूमिका में है। पॉलिसी होल्डर्स के अधिकारों को इस तरह से नहीं कुचला जा सकता है।