देश-विदेश के करोड़ों हिन्दुओं के लिए बदरीनाथ और केदारनाथ धाम घोर आस्था व श्रद्धा के केंद्र हो सकते हैं, लेकिन इन मंदिरों की व्यवस्था संचालित करने वाली बदरीनाथ – केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के कई कर्मचारियों के लिए लोगों की श्रद्धा व आस्था से कोई मतलब नहीं है। उनके लिए बीकेटीसी केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि का माध्यम है। श्रद्धालुओं के दान व चढ़ावे से चलने वाली बीकेटीसी में अनियमितताओं, आर्थिक गड़बड़ियों, नियुक्तियों, पदोन्नत्ति आदि में धांधली की ख़बरें समय- समय पर सामने आती रहीं हैं। लेकिन इस बार समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय का सोशल मीडिया में वायरल हो रहा पत्र और विभागीय अधिकारियों की एक रिपोर्ट पढ़कर हर कोई हैरान है।
मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र ने 14 नवम्बर को प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्र लिख कर समिति में कार्यरत एक कार्मिक राकेश सेमवाल की वरिष्ठता व एसीपी विवाद को लेकर शासन स्तर से वित्त, कार्मिक व न्याय विभाग की एक संयुक्त समिति गठित कर जांच कराने का अनुरोध किया है। पत्र में बीकेटीसी अध्यक्ष ने लिखा है कि उक्त कार्मिक की वरिष्ठता व एसीपी विवाद को पूर्व में देवस्थानम बोर्ड के समय तत्कालीन मुख्य कार्याधिकारी व आयुक्त गढ़वाल के साथ ही तत्कालीन वित्त नियंत्रक ने निस्तारित कर दिया था और इसकी जानकारी उक्त कर्मचारी को भी दे दी थी। इसके बावजूद उक्त कर्मचारी द्वारा लगातार विभिन माध्यमों से अपनी पदोन्नति के लिए दवाब बनाया जा रहा है और इसके लिए कभी वकील के माध्यम से नोटिस भेज कर और कभी ट्रिब्यूनल का सहारा लिया जा रहा है। पत्र में यह भी कहा गया है कि उक्त कर्मचारी बीकेटीसी द्वारा की गयी कार्यवाही से संतुष्ट नहीं लगता है। उक्त कार्मिक के रुख से बीकेटीसी के कामकाज में अनावश्यक गतिरोध पैदा हो रहा है। इसलिए शासन स्तर से ही इस प्रकरण की जांच की जाए।
इस प्रकरण में हैरान कर देने वाली बात बीकेटीसी अध्यक्ष के पत्र के साथ संलग्न विभागीय अधिकारीयों की एक रिपोर्ट है। यह रिपोर्ट उक्त कार्मिक राकेश सेमवाल की नियुक्ति से लेकर पदोन्नति तक में हुयी भारी धांधलियों की पोल ही नहीं खोलती है, बल्कि मंदिर समिति में व्याप्त अंधेरगर्दी की ओर भी इशारा करती है। रिपोर्ट के अनुसार राकेश सेमवाल की नियुक्ति वर्ष 1996 में सीजनल अनुचर/ चौकीदार के रूप में हुयी थी। मंदिर समिति में पूर्व में सीजनल कर्मचारियों को केवल छः माह के लिए यात्रा सीजन के लिए नियुक्त किया जाता था। नियुक्ति के एक वर्ष बाद ही सेमवाल को व्यवस्थापक/ अवर लिपिक के पद पर नियुक्ति दे दी गयी।
इसके बाद वर्ष 2006 में सेमवाल को पदोन्नति देते हुए प्रवर लिपिक बना दिया गया। इसके बाद सेमवाल के हौंसलों को उड़ान मिल गयी। वर्ष 2011 में उत्तराखंड शासन ने मंदिर समिति के व्यवस्थापकों के लिए गढ़वाल मंडल विकास निगम के प्रबंधकों की तर्ज पर वेतनमान स्वीकृत किया। साथ ही यह भी शर्त रखी कि गढ़वाल मंडल विकास निगम के प्रबंधकों की तर्ज पर वेतनमान तभी दिया जायेगा, जबकि संबंधित कर्मचारी के पास उस अनुरूप शैक्षिक अर्हता और अनुभव होगा। लेकिन मंदिर समिति के तत्कालीन मुख्य कार्याधिकारी ने सेमवाल की अहर्ताओं और अनुभव को देखे बिना उनको उच्चीकृत वेतनमान दे दिया।
इस मामले में मंदिर समिति के एक्ट की धज्जियां तक उड़ा दी गयीं। एक्ट के मुताबिक पद व वेतनमान स्वीकृत करने का अधिकार शासन के पास है। इसके बावजूद मंदिर समिति ने अपने स्तर से ही सेमवाल को उच्चीकृत वेतनमान दे डाला। अंधेरगर्दी का आलम देखिये कि उच्चीकृत वेतनमान देने के साथ ही वैतनिक व पदीय लाभ के रूप में लाखों रूपये का एरियर पिछली तिथि से दे दिया गया। यही नहीं वर्ष 2018 में सारे नियम कानूनों को ताक पर रख कर सेमवाल को 5400 का ग्रेड पे दे दिया गया। इसके लिए भी शासन से कोई स्वीकृति नहीं ली गयी।
सेमवाल के प्रकरण में कई आश्चर्यजनक तथ्यों का पता चलता है। एक अस्थायी चौकीदार के रूप में नियुक्त हुए कर्मचारी को तमाम अन्य कर्मचारियों की वरिष्ठता को दरकिनार कर पदोन्नति पर पदोन्नतियां देकर पीसीएस अधिकारीयों वाला वेतनमान दिया जा रहा है। एक पीसीएस अधिकारी बनने के लिए अभ्यर्थियों को कितनी मेहनत करनी पड़ती है और कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। लेकिन मंदिर समिति में एक अस्थायी चौकीदार के रूप में तैनात कर्मचारी नियम विरूद्ध नियुक्ति व पदोन्नती लेकर पीसीएस अधिकारी वाला वेतन ले रहा है। जबकि विभागीय रिपोर्ट के मुताबिक उसकी शैक्षिक योग्यता मात्र इंटरमीडियट है।
मंदिर समिति के सूत्रों का यह भी कहना है की सेमवाल की नियुक्ति प्रक्रिया भी गलत है। नियुक्ति पत्र जारी करने का अधिकार मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी को है, किन्तु सेमवाल का नियुक्ति पत्र उप मुख्य कार्याधिकारी की ओर से जारी किया गया है। यही नहीं सेमवाल द्वारा अपने को मंदिर समिति का विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) बताया जाता है और अपने कार्यालय में भी यही पदनाम वाला बोर्ड लगाया जाता रहा है। विगत दिनों सेमवाल द्वारा मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी पद पर तैनाती के लिए भी भारी जोड़तोड़ की जाती रही। बिना किसी स्वीकृति के सेमवाल कई वर्षों से अवैध रूप से एक सरकारी वाहन पर भी कब्ज़ा जमाये रहा। इन सब कारणों से मंदिर समिति के अन्य कर्मचारियों में भारी आक्रोश भी व्याप्त है। मंदिर समिति के कर्मचारी सेमवाल प्रकरण में पूर्व मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह की भूमिका पर भी प्रश्न चिह्न लगाते हैं।
हालांकि, मंदिर समिति में पिछले दिनों पहली बार हुए स्थानांतरणों में सेमवाल को समिति के पीपलकोटी स्थित विश्राम गृह में प्रबंधक के रूप में भेजा गया। किन्तु सूत्रों का कहना है की सेमवाल ने अभी तक वहां अपनी उपस्थिति नहीं दी और वो हर तरह के हथकंडे अपना कर अपना ट्रांसफर रुकवाने की फ़िराक में हैं। बताया जाता है कि मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र ने किसी भी प्रकार के दवाब में आने से इंकार करते हुए सेमवाल का वेतन रोकने के आदेश दिए हैं। बहरहाल, मंदिर समिति के अध्यक्ष द्वारा शासन से इस प्रकरण की जांच कराये जाने के लिए पत्र लिखने के बाद से अब गेंद शासन के पाले में है। देखना होगा कि मंदिर समिति में फैली इस प्रकार की अराजकता को रोकने के लिए शासन क्या कार्यवाही करता है।