भाद्रपद माह में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद श्रीराधा अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का नाम हमेशा श्रीराधा जी के साथ लिया जाता है। जिन भक्तों से श्रीराधा रानी प्रसन्न होती हैं उनसे भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रीराधा रानी के बिना भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है। श्री राधा अष्टमी के दिन श्री राधाजी से मांगी गई हर मन्नत पूर्ण होती है। इस दिन श्रीराधा-कृष्ण की संयुक्त रूप से पूजा करनी चाहिए।
श्रीराधा अष्टमी का व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य और संतान सुख प्राप्त होता है। मान्यता है कि श्रीराधा अष्टमी पर व्रत रखने वालों को कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। श्रीराधा रानी की पूजा से जीवन में आ रही सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं। श्रीराधा रानी, भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इस दिन विवाहित महिलाएं संतान सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत में श्रीराधाजी की पूजा का समय मध्याह्न का होना चाहिए।
पूजन पश्चात पूरा उपवास करें। श्रीराधा अष्टमी का व्रत करने से घर में सौभाग्य आता है। घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन श्रीराधा-कृष्ण मंदिर में ध्वज, पुष्पमाला, वस्त्र, पताका, मिष्ठान एवं फल अर्पित करें। दिन में हरिचर्चा में समय व्यतीत करें तथा रात्रि को नाम संकीर्तन करें। मंदिर में दीपदान करें। मध्याह्न के समय धूप, दीप, अक्षत, पुष्प, फल, नैवेद्य और दक्षिणा आदि अर्पित करें। श्रीराधा-कृष्ण की स्तुति करें। राधाष्टमी के दिन शुद्ध मन से व्रत नियमों का पालन करें। पूरा दिन उपवास रखें। दूसरे दिन श्रद्धापूर्वक सुहागिन महिलाओं को या ब्राह्मणों को भोजन कराएं। यथासंभव दक्षिणा प्रदान करें।