आत्महत्या के लिए भड़काना एक मानसिक प्रक्रिया- सुप्रीम कोर्ट

दिल्ली /  सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि किसी को आत्महत्या के लिए भड़काना एक मानसिक प्रक्रिया है। किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाना या सक्रिय मदद देना ही भड़काना माना जा सकता है। आरोपी द्वारा किए काम का इरादा व्यक्ति को आत्महत्या की ओर धकेलने वाला होना चाहिए। एक महिला पर आत्महत्या के लिए भड़काने और एससी-एसटी एक्ट में की जा रही कानूनी कार्रवाई व गैर जमानती वारंट खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह बात कही। जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस ऋषिकेश राय की बेंच में कहा कि जब किसी व्यक्ति को आत्महत्या करने में सीधी मदद न दी जाए या कोई ऐसा काम न किया जाए जिस से व्यक्ति आत्महत्या कर ले तो आरोपी को आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसावे का दोषी नहीं माना जा सकता।  सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए महिला द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ की गई अपील स्वीकार की। हाईकोर्ट ने महिला पर धारा 306 में हो रही कानूनी कार्रवाई रद्द करने से इनकार किया था। 

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